Sunday, November 22, 2009

पहचान परछाई


जाने अनजाने तू मुझसे
मिल गई

मै तुझसे खफा तो नहीं
मगर तुम

मुझसे प्यार मत कर बैठना
मै तो

सूरज की रोशनी में आता हु
और तुम

श्याम ढलतेही चली जाती हो
परछाई की तरह

अब मै तुम्हे पहचान नहीं सकता
क्योकि ..?



क्योकि ..?




तुम खिसकती हो परछाई की तरह
अपनी पहचान छुपाये


शायद मै तरसने लगा था
तुम्हे मिलनेको

मिलने की आस लगाए बैठा था
किसी कोनेमे
किसी काली छाया की तरह
तुम पास से हो गुजरी हो
पता तो नहीं मुझे क्यों
पर ऐसा लगा जरुर
की वो और कोई नहीं तुम ही हो
जो हर वक़्त मेरा
साये की तरह पीछा करति हो
वर्णा मै तो तुमसे ...
बिछड ही गया था
की सी अंधियारी कोठारी में
मै जब अकेला था
तब मै तुम्हे याद कर रहा था

बहोत देर से तुम यही खडी हो
तुम्हारे घुटनोमे
दर्द तो नहीं हो रहा
चिंता सी लग रही है
पर क्या कहू मै तुमसे
तुम तो मेरी बात
समझ ही नहीं पाती हो
काश कोई हो जिससे मै
ये कह सकू की तुम
कभी मुझसे नाराज थे ..?

नहीं जवाब आया
तो मै समझ जावुंगा
तुम्हे
मुझसे कोई गिला शिकवा नहीं
मगर
ये जरुरी है की
अपनी
सीमा मुझतक मत पोहचने देना

तुम मेरा जो ख़याल रखती हो
उसका एहसान तो
मै कभी चुका नहीं सकता
मगर तुम बड़ी ही समझदार हो

दूर से ही जाने का इशारा कर देती हो
पर क्यों ?

मुझ पर यकी नहीं ...
समझो जो दो दिलोंके
बिच होता है ..
यही आपस इ रिश्ता
मै बनाने नहीं दे रहा हु

तुमसे
हा तुमसे ...लो आज तो हद हो गई
तुमने जो मेरे
दिलपे घाव किया है
उसे मै क्या
कोई भी नहीं मिटा सकता
पर ..

ये मेरी प्यार की
निशानी नहीं है
तुम गलत मत समझना
...
यही दुनियाका दस्तूर है
तुम्हा रे लिए
और मेरे लिए ....



खुलके ..जीने का आंनद लेना होगा तुम्हे
तुम्हारी गहराई
और तुम
कभी आपसी झगडे में मत खो जाना

यही नितिमत्ता है

अगर मै कभी साथ
झोडदू तुम्हारा
तो तुम
अपनी हस्ती बचाए रखना
अनन्त काल तक
वो तुम्हे मेरी याद दिलाएगा
जो की मै हु
एक सूर्य (सूरज )
जिसके होसले बुलंद है
कोई भी उसे छु नहीं सकता
फिरभी
उसे पानेकी
आशा रखते है सब
और तूम मेरे प्यार में
खो जाती हो
..
कोई बात नहीं
कभी किसी कम नमी के छत में
तुम मुझे
देखा करो मै तुम्हे
इसी तरह
दिखता रहूंगा
तुम्हारे करीब

आँखे बंद हो ने की कगार
पर
.तुम्हे जब मै नजर आवूंगा
तब ..
अपना होसला मत खोना
मै तो
चला जावुंगा पर तुम अपना
साम्राज्य
बढाना


नजर अंदाज होके
हमसे कितने दूर जाओगे
ये तो आप भी बता न पायंगे
पर
हम आपसे एक सौदा करना चाहते है
हमसे जो दुरी आपने बनायीं है
उसे क़यामत तक
निभाना ..
यही
हम अपना फर्ज समझते है

कागज़ की कश्ती
जब पानी में डूब जायेगी
तब हमें एक आहट सी सुनाई देगी
जो की आपकी एक चिंगारिसे
जलते हुए हमारे दिल के पास
आजायेगी ..

हम किसी पेड़ की छाओ में न जायेंगे कभी
आपकी रह्गुजार याद हमें तड़पायेगी व़हा
..
या अल्ल्ह्हा ..

आपका रात का साम्राज्य
हमें कुबूल है
काली परछाई जब तक है ..
हम व़हा जा नहीं सकते
आपका कुबूल नामा
हमारे हतेली पर
जब तक है
तब तक आप
और हम
इसी इंतजार में रहेंगे
..
जब मै आपके अन्दर समा जावुंगा
तब काबुल नामा कुबूल
कीजी येगा
हमारे हथेली का
कोई आवाज न आएगी
नाही आंधी आएगी
नाहि कोई चमत्कार होगा
आपकी परछाई ..
जरुर आएगी ये हमारा आपसे वादा है

सूर्य

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